अपने पैरों पर खड़ा होना सीखे | महात्माजी और चूहे की कहानी

एक कहानी है । एक बार की बात है कि एक घने जंगल में एक साधू महाराज तपस्या करते थे । लम्बी – चौड़ी तप साधनाएँ करके साधू महाराज ने बहुत सी दुर्लभ सिद्धियों को हस्तगत कर लिया था । किन्तु फिर भी वह अपने में कोई कमी महसूस कर रहे थे । अतः तप में निरत थे ।

एक दिन साधू महाराज अपनी कुटिया में जलपान करके सुस्ता रहे थे कि तभी अचानक वहाँ कहीं से एक चूहा फुदकता हुआ आ भटका । साधू महाराज सिद्ध तो थे ही तुरंत उसकी मनोदशा समझ गये । चूहा बिल्ली के डर से कुटिया में छुपने का स्थान खोज रहा था । साधू महाराज को कौतुक सुझा, उन्होंने तुरंत चूहे को बिलाव बना दिया । अब वह भी म्याऊ – म्याऊ करता हुआ बाहर निकला । बिल्ली से उसकी दोस्ती हो गई । दोनों ख़ुशी – ख़ुशी उछल कूद करते हुए वहाँ से निकल गये । यह देख साधू महाराज को बड़ी ख़ुशी हुई ।

कुछ दिन बाद फिर साधू महाराज अपनी कुटिया की सफाई कर रहे थे कि अचानक एक बिलाव तेजी से दौड़ता हुआ आया और उनकी टांगो से होता हुआ कुटिया में जा छुपा । साधू महाराज ने पीछे पलटकर देखा तो पाया कि कुछ कुत्ते उसके पीछे पड़े थे । साधू महाराज को मांजरा समझते देर न लगी । उन्होंने तुरंत उस बिलाव को कुत्ता बना दिया । अब वह कुत्ता गुर्राते हुए बाहर निकला तो वो कुत्ते डर के मारे भाग खड़े हुए । कुत्ता साधू महाराज का धन्यवाद करते हुए उनके पैर चाटने लगा और जंगल में भाग गया ।

कुछ दिन बाद फिर कुत्ता तेजी से भागता हुआ और आया और कुटिया में घुस गया । साधू महाराज ने बाहर निकलकर देखा तो जंगली शेर घूम रहे थे । साधू की वजह से वह कुटिया के निकट नहीं आये । साधू महाराज बात समझ गये । उन्होंने उसे भी शेर बना दिया और बोले – “जा अब निडर होकर घूम ।”

उसके कुछ दिनों बाद जंगल में कुछ शिकारी शेर की खाल की तलाश में निकले थे । बहुत भटकने के बाद उन्हें वो शेर की खाल में चूहा दिखाई दिया । वह डरकर जैसे तैसे अपनी जान बचाकर भागा और कुटिया में साधू महाराज के पास आया । साधू महाराज आँखे बंद किये ध्यान मुद्रा में बैठे थे । जब आंखे खोली तो देखा कि शेर उनके सामने बैठा डर के मारे कांप रहा है । और बाहर शिकारियों के भागने की आवाजे आ रही थी ।

इस बार साधू महाराज को विचार आया – “ इसे कुछ भी बना दो, ये चूहा ही रहेगा । अगर इसमें शेरों की तरह हिम्मत होती तो यह एकाध शिकारी को तो आहार बना ही लेता ।” इतना सोचकर साधू महाराज ने कमंडल से हाथ में जल लिया और उसे फिर से चूहा बना दिया ।

इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है दोस्तों ! कि कोई हमें चाहे कुछ भी बनाना चाहे, हम आखिर में वही बनते है जो हम भीतर से है । इसलिए हमें अपने भीतर वाले मनुष्य को बनाना चाहिए । अगर वो सही हो गया तो बाहर वाला तो अपने – आप सही हो जायेगा । कुलमिलाकर कहानी का सार है कि “अपने पैरो पर खड़ा होना सीखे”।