आनंद का मूल्य | स्वामी रामतीर्थ का प्रेरक प्रसंग

aanand ka mulya swami ramtirth ka prerak prasang

स्वामी रामतीर्थ संस्कृत और फारसी के अच्छे विद्वान थे । उनके विद्यार्थी काल में ही उनके पिता ने उनकी शादी करवा दी थी । एक शिक्षक और प्राध्यापक रहने के पश्चात् आखिर एक दिन वह ईश्वर प्रेम में डूबकर रोने लगे । ईश्वर के प्रति उनके प्रेम को देखकर किसी ने भी उनका रास्ता रोकना उचित नहीं समझा । उसी दिन से तीर्थराम, स्वामी रामतीर्थ बन गये ।

योग – वेदांत और दर्शन के गूढ़ रहस्यों को वह सम्पूर्ण संसार में पहुँचाना चाहते थे । इसी उद्देश्य से वह एक बार अमेरिका के प्रवास पर गये । अमेरिका में उनके प्रवचन सुनकर लोग बड़े प्रभावित हुए । लोगों का स्वामीजी पर इतना विश्वास हो गया कि कभी कभी तो लोग अपनी व्यक्तिगत समस्याएँ लेकर भी उनके आवास पर आ जाया करते थे ।

इसी तरह एक दिन संध्या के समय एक महिला स्वामीजी से मिलने आई और बोली – “स्वामीजी ! मेरा मन बड़ा अशांत है । जबसे मेरे इकलौते पुत्र का निधन हुआ है । ऐसा लगता है, जैसे मेरा सुख – चैन सब छीन गया । न दिन को चैन मिलता है न रात को आराम । यदि आप मेरी कोई सहायता कर सके तो कृपा करके मुझे कोई उपाय बताये ।”

स्वामीजी उस महिला की मनःस्थिति को समझ चुके थे । अतः बोले – “ क्यों नहीं !  फिर से आपके जीवन में सुख – शांति और आनंद हो सकता है, किन्तु उसके लिए आपको आनंद की कीमत चुकानी पड़ेगी । क्या आप आनंद की कीमत चुकाने के लिए तैयार हो ?”

दृढ़तापूर्वक महिला बोली – “ स्वामीजी ! आप बताइए, आप जो कहेंगे मैं करने को तैयार हूँ । आप जो कीमत मांगेंगे मैं देंगे को तैयार हूँ , मेरे लिए इस समय आनंद से बढ़कर कुछ नहीं ।”

स्वामीजी बोले – “ ठीक ! आप अपने घर जाइये ! आनंद आपके घर पहुंचा दिया जायेगा ।”

दुसरे दिन स्वामीजी स्वयं एक अनाथ हब्शी बच्चे को खोजकर उसके घर पहुंचे और बोले – “ ये है आपका आनंद । आजसे यह आपका पुत्र है और आपको इसका पालन – पोषण अपने पुत्र की तरह करना है ”
उस बच्चे के काले रंग रूप को देखकर महिला चोंक गई और बोली – “ किन्तु स्वामीजी ! एक हब्शी बालक मेरे परिवार का सदस्य कैसे हो सकता है ?”

तब स्वामीजी बोले – “ माताजी ! आनंद का मूल्य मुद्राओं से नहीं, भावनाओं और संवेदनाओ से चुकाया जाता है । इसलिए वह भाव, संवेदनाएं और ममता आपको इस बालक से ही मिल सकती है । इसे आपकी जरूरत है और आपको इसकी । इसलिए आपको इसे अपना लेना चाहिए । किन्तु केवल इसलिए कि यह एक हब्शी बालक है, आप इसे नहीं अपना सकती तो आनंद को भूल जाइये । आपके लिए आनंद की प्राप्ति कठिन है ।”

शिक्षा – मनुष्य जीवन में जो कुछ भी करता है । अपने आनंद के लिए करता है । जन्म से लेकर मृत्यु तक एक आनंद की कस्तूरी ही है, जिसके पीछे मनुष्य बेहताशा दोड़ता रहता है । लेकिन क्या वो उसे मिल पाता है । हाँ ! कुछ क्षणों के लिए मिलता तो है, लेकिन टिकता नहीं । स्थाई आनंद मनुष्य को नहीं मिल पाता, और इस अस्थाई संसार में तो मिल भी कैसे सकता है ?

आनंद की खोज

आचार्य महीधर आत्मज्ञान और आनंद की खोज में घर छोड़कर वैरागी हो गया । उधर माँ बेटे के शौक में दुखी रहने लगी । लेकिन निष्ठुर महीधर माँ के इस दुःख से अनजान था । दिन रात मेहनत मजदूरी करके वह अपना गुजारा चलाने लगी ।

महीधर ने बहुत जप – तप किया लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। आखिर एक दिन महीधर ने वापस घर का रास्ता अपना लिया । अपने बेटे को देख बूढी माँ बहुत खुश हुई । दुखी होते हुए महीधर बोला – “माँ ! मुझे कोई आत्मज्ञान नहीं हुआ ।”

हर्षित होते हुए बोली – “  बेटा ! तूने मुझ दुखियारी का दुःख पहचान लिया । अब तेरी साधना सफल होगी” माँ के आशीष से महीधर आचार्य महीधर के नाम से विख्यात हुआ । उन्हें सम्पूर्ण वेदों का ज्ञान प्राप्त हुआ और उन्होंने वेदों पर भाष्य भी लिख डाले ।

शिक्षा – कर्तव्य और अपनी जिम्मेदारियों से भागकर कोई सफल नहीं हो सकता । बल्कि असली साधना तो अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हुए उपासना करने में है । यही जीवन की सबसे बड़ी आराधना है ।