दोपहर का समय था । मध्य आकाश में सूर्य तप रहा था । हवाएं कभी उत्तर से दक्षिण तो कभी पूरब से पश्चिम बह रही थी । ऐसे समय में एक भिखारी दरिद्र नारायण भोलू दर – दर भटक रहा था । टुटा – फूटा कटोरा, फटे हुए कपड़े और बिखरे हुए बाल लिए वह दर – दर पर आवाज लगाता। कहीं से रोटी तो कहीं से दाल लिए वह नदी किनारे पेड़ों की छाव में मजे से भोजन करता ।
हमेशा की तरह आज भी उसने भोजन किया और पेड़ो की छाव में सो गया । तभी उसने एक सपना देखा कि उसे किसी ने उठाकर नदी में फेंक दिया है। वह डूब रहा था, मजे से डूब रहा था । वह बचने का कोई प्रयास नहीं कर रहा था । जब वह पेंदे पर पहुंचा तो उसने देखा कि नदी में पानी के बहाव से सभी पत्थर चिकने हो रहे है ।
वह गहरी सोच में डूब गया । वह सोचने लगा कि अगर पानी के बहाव से कठोर पत्थर भी घिसकर चिकने हो सकते है तो फिर मैं भिखारी से सेठ क्यों नहीं हो सकता, रंक से राजा क्यों नहीं हो सकता ! उसके शरीर में आत्मप्रेरणा की लहरे दौड़ गई । वह उछलकर उठ खड़ा हुआ । विचारों के महासागर से वह निकला भी नहीं था कि उसकी दृष्टि दूर नदी में स्नान कर रही राजकुमारी पर पड़ी। उसने वही से निश्चय कर लिया कि वह राजकुमारी से ही विवाह करेगा। वह राजमहल की ओर चल दिया ।
रास्ते में उसने कई लोगों को राजमहल का पता पूछा तो लोगों ने पूछा – “राजमहल जाकर क्या करेगा रे भिखारी !”
ह्रदय में साहस, आँखों में दृढ़ता, और विचारो में निश्चय लेकर वह बोल उठता – “राजकुमारी से विवाह करूंगा ।”
उसकी यह बात सुनकर लोग उसका मजाक बनाते और बोलते – “ राजकुमारी विवाह करेगी और वो भी तुझ जैसे भिखारी से। शकल देखी है अपनी ! बड़ा आया राजकुमारी से विवाह करने”
भोलू भिखारी बोलता है – “ मुझमे क्या कमी है, मुझसे विवाह क्यों नहीं करेगी ?”
एक समझदार व्यक्ति बोला – “भाई ! आजके जमाने में धनवान ही धनवान से विवाह करते है । अब तू कोई राजकुमार तो है नहीं जो तुझसे विवाह करेंगी ।”
भिखारी लोगों की बातों को अनसुना करके आगे बढ़ गया । आखिर वह राजमहल पहुंच ही गया । उसे द्वार पर ही द्वारपाल ने रोककर पूछा – “अगर भिक्षा चाहिए तो यही मिल जाएगी, अन्दर जाना मना है ।”
भोलू बोला – “ भाई ! अगर भीख में तुम राजकुमारी को दे सको तो प्रतीक्षा करता हूँ ।”
द्वारपाल ने उसे पागल समझकर भगाने की कोशिश की लेकिन वह अपनी जिद पर अडिग था । उसे मृत्यु का भी भय नहीं था । आखिर हारकर द्वारपाल ने उसे अन्दर जाने दिया ।
राजदरबार में पहुंचकर खड़ा हो गया । सभी उस अनोखे याचक को देख रहे थे । महाराज ने देखा तो बोले – “ बोलो ! क्या चाहते हो ?”
भोलू बोला – “ महाराज ! मुझे राजकन्या से विवाह करना है !”
क्रोधित होकर राजा बोला – “ क्या व्यर्थ की बकवाद करते हो । राजकुमारी का विवाह और वो भी तुम जैसे भिखारी से । और कुछ चाहिए तो बोलो, अन्यथा दफा हो जाओ, यहाँ से ।”
लक्ष्य के प्रति निश्चय, वाणी में दृढ़ता, ह्रदय में साहस लिए भोलू बोला – “ नहीं महाराज ! मुझे और कुछ नहीं चाहिए ।”
महाराज बोले – “ तो चले जाओ यहाँ से, और मेरी बेटी का नाम अपनी जबान पर भी लाया तो तुम्हे मृत्यु के दंड दिया जायेगा ।”
भोलू भिखारी बोला – “ वो मुझे सहर्ष स्वीकार है, महाराज ! लेकिन मैं आपकी बेटी से ही विवाह करूंगा ।”
उसके पागलपन को देखकर मंत्री उसकी मनःस्थिति समझ गया । उसने धीरे से महाराज से जाकर कहा – “ महाराज ! इसे बोल दीजिये कि अगर ये राजकुमारी के वजन के बराबर हीरे ले लाये तो इसका विवाह राजकुमारी से हो सकता है ।”
महाराज ने वही बात भिखारी के आगे दोहरा दी । भिखारी भी वचन लेकर राजमहल से निकल गया ।
हमेशा की तरह वह बाजार में हीरे मांगने लगा – “ हीरे दो, राजकुमारी से शादी करूँगा ।” लेकिन उसे हीरे कौन देता ।
तभी उसे एक सज्जन मिले उन्होंने पूछा – “कितने हीरे चाहिए, तुझे राजकुमारी से विवाह करने के लिए ?
भोलू बोला – “राजकुमारी के वजन के बराबर ।”
तो वह सज्जन बोला – “ देख ! इतने हीरे तो तुझे कोई नहीं देने वाला । अगर तू राजकुमारी को इतना ही चाहता है तो समुन्द्र से हीरे निकाल ला । उसके वजन के बराबर हीरे तो तुझे वही पर मिल सकते है ।
उस व्यक्ति की बात सुनकर भोलू समुन्द्र के किनारे पहुँच गया । आँखों में चमक, इरादों में आशा लेकर वह समुन्द्र के पानी उलीचने लगा । एक महिना, तीन महीने, छः महीने और देखते ही देखते एक साल हो गया ।
तभी देवताओं ने देखा कि यह कौन पागल समुन्द्र का पानी उलीचने में लगा है । एक देवदूत आया और उससे तहकीकात करने लगा – “तू कौन है और क्यों व्यर्थ परिश्रम करता है ?”
पसीना पोछते हुये भोलू बोला – “मैं व्यर्थ परिश्रम नहीं कर रहा हूँ । समुन्द्र को सुखाकर राजकुमारी एक वजन के बराबर हीरे ले जाऊंगा । और उससे विवाह करूंगा ।”
देवदूत बोला – “लेकिन क्यों इतना कष्ट सहते हो ?, इसमें तुम्हारा जीवन भी निकल जाये तो भी यह समुन्द्र नही सूखेगा और तुम हीरे नहीं लेजा पाओगे ।”
चहरे पर चमक और आँखों में आशा लिए भोलू बोला – “अगर अपने प्रेम को पाने के लिए मैं कुर्बान भी हो जाऊ तो मुझे कोई परवाह नहीं । और वह पाने काम में लग गया ।”
यह देख देवदूत को उसपर दया आ गई । देवदूत ने समुन्द्र देवता से विनती की कि इसे पगले को जितने हीरे चाहिए दे दो ।
राजकुमारी के वजन से अधिक हीरे अपने कंधे पर लादकर वह राजमहल पहुंचा । द्वारपाल उसे पहचान गया, इसलिए उसने उसे नहीं रोका । वह सीधे राजदरबार में पहुंचा । महाराज के सामने हीरो का बोरा रखते हुए बोला – “ ये लो महाराज ! तौल दो अपनी बेटी को हीरों से ।”
राजा उसे देखकर अचंभित हो गया । वह मंत्री को ओर देखने लगा । मंत्री ने महराज को अपना वचन याद दिलाया ।
उन्होंने ख़ुशी – ख़ुशी राजकुमारी का विवाह भोलू भिखारी से करवाया । माफ़ कीजिये ! अब वो भिखारी नहीं रहा क्योंकि महाराज ने उसे रहने के लिए सुन्दर सा महल जो बनवा दिया था । और क्योंकि महाराज के कोई पुत्र नहीं था अतः उतराधिकारी भी वही था ।
इस छोटी सी कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि यदि मनुष्य ठान ले तो असंभव को संभव बना सकता है । साहस, परिश्रम, पुरुषार्थ और आशा से कुछ भी हांसिल किया जा सकता है ।