न्यायशील राजा की चतुराई

nyayshil raaja or uski chaturai
एक गाँव में आदिनाथ और दीनानाथ नाम के दो किसान रहते थे । दोनों ही किसान घनिष्ट मित्र थे । दोनों अक्सर अपना अनाज लेकर व्यापार के लिए परदेस जाया करते थे । हर साल की तरह इस बार भी दौलतपुर में मेला लगने वाला था । दोनों मित्र अपना – अपना अनाज लेकर मेले में पहुंचे ।

आदिनाथ का अनाज गुणवत्ता में अच्छा होने से अच्छे दामों में बिक गया । इसलिए उसने झट – पट बेंचकर उन पैसों से नया माल खरीदकर नया व्यापार शुरू कर दिया । लेकिन दीनानाथ की लापरवाही की वजह से उसका अनाज सड़ चूका था । उसके अच्छे दाम नहीं मिले । इसलिए वह कोई व्यापार नहीं कर सका । तीन – चार दिन इंतजार करने के बाद आखिर उसे सस्ते दामों में बेचना ही पड़ा ।

जो भी धन मिला था, वो लेकर अब उसने गाँव जाने की सोची । वह आदिनाथ के पास गया और गाँव जाने को पूछा तो वह बोला – “ भाई ! मेरा व्यापार अच्छा चल रहा है, इसलिए मैं नहीं आ सकता, ये माल खत्म करके आऊंगा !”

तो दीनानाथ बोला – “ठीक है तो मैं तो चलता हूँ, मेरा तो अनाज सड़ने की वजह से सब चौपट हो गया ।”
अपनी झोली से एक हिरा निकालते हुए आदिनाथ बोला – “ अच्छा रुक ! ये ले जा और मेरी पत्नी को दे देना और सकुशल कहना ।”

हिरा लेकर दीनानाथ चल दिया । चलते – चलते रास्ते में दीनानाथ के मन में लालच आ गया । गाँव जाकर उसने वह हिरा अपने ही घर में रख दिया ।

जब आदिनाथ की पत्नी को पता चला कि दीनानाथ परदेश से आ गया तो वह उसके घर अपने पति का कुशलक्षेम पूछने चली गई । आदिनाथ की पत्नी बोली – “ आपके मित्र को कहाँ छोड़ आये ? भैया !”

दीनानाथ बोला – “अरे पक्का लोभी है । व्यापार चल गया तो आपको भूल गया । बोला है, जो नया माल लिया वो बेचकर आएगा ।”

आदिनाथ की पत्नी बोली – “मेरे लिए कुछ भिजवाएं है या नहीं ।”

दीनानाथ रुखा होकर बोला – “ बोला ना, वो व्यापार में व्यस्त है, आपका कोई खयाल नहीं उसे ,”

ऐसा जवाब सुनकर आदिनाथ की पत्नी बिचारी चली आई ।

तीन – चार दिन बाद आदिनाथ परदेश से आया तो देखता है कि उसकी पत्नी नाराज है । उसने प्रेम जताने की कोशिश की तो वह भड़क उठी । तो दीनानाथ बोला – “ अरे नाराज क्यों होती हो ? तुम्हारे लिए हिरा भिजवाया तो था ।”

वो मुंह फेरते हुए बोली – “ मुझे कोई हिरा नहीं मिला ।”

दीनानाथ की चालाकी को आदिनाथ समझ चूका था । वह हाथ – मुंह धोकर सीधा उसके घर गया । आदिनाथ को देख दीनानाथ बोला – “ कब आना हुआ भाई !”

आदिनाथ बोला – “अभी – अभी आ रहा हूँ, लेकिन तुम ये बताओं ? मैंने जो तुम्हे हिरा दिया था वो कहाँ है ?”

दीनानाथ बोला – “भैया वो तो आपने भाभी को देने को बोला था, इसलिए मैंने उनको दे दिया । आपको भरोसा नहीं हो तो आप रामू और भोलू को पूछ सकते हो, उनके सामने ही मैंने भाभी को हिरा दिया था । भाभी बेवजह मुझपर झूठा इलज़ाम लगा रही है ”

आदिनाथ को अपनी बीवी पर पूरा भरोसा था । उसे पता था कि दीनानाथ ने रामू और भोलू को लालच देकर झूठी गवाही देने के लिए राजी कर लिया है । वह सीधा राजा के पास गया और पूरा मांजरा कह सुनाया ।

दुसरे दिन राजा ने आदिनाथ, दीनानाथ, दोनों गवाह और पत्नियों को बुला लिया । सबसे पछताछ की गई। लेकिन दीनानाथ अब भी अपने बयान पर अडिग था । तभी राजा ने दोनों गवाहों से पूछा – “ जब दीनानाथ ने आदिनाथ की पत्नी को हिरा दिया तब तुमने हिरा तो देखा ही होगा ?”

दोनों गवाह एक स्वर में बोले – “जी महाराज ! हमने हिरा देखा था ।”

तब राजा ने राजकोष से कुछ मोती और हीरे मंगवाए और दीनानाथ, रामू और भोलू तीनो को बारी – बारी से आदिनाथ के हीरे के जैसा हिरा चुनने के लिए कहा ।

तीनो ने अलग – अलग आकार के हीरे चुने उसी से साफ हो गया कि दोनों गवाह झूठ बोल रहे थे । उन दोनों की अच्छे से पिटाई की गई तो उन्होंने लालच में आकर झूठी गवाही देने का पूरा सच बोल दिया । उन दोनों को जेल में डाल दिया गया ।

अब बारी थी दीनानाथ की । उससे पूछा गया लेकिन वह अब भी सच को स्वीकार नहीं कर रहा था । तो राजा ने सच नहीं बोलने तक कोड़े मारने का आदेश दे दिया । तो कुछ कोड़े खाने के बाद दीनानाथ आखिर सच बोल ही दिया ।

राजा ने चतुराई से हिरा लेकर उसके असली हकदार को दे दिया और दीनानाथ जैसे झूठे और लोभी इन्सान को आजीवन कारावास की सजा सुना दी ।

इस कहानी से शिक्षा मिलती है दोस्तों ! हमेशा सच की जीत होती है । कभी भी लोभ – लालच में आकर ऐसा कदम न उठाये जो आपके और आपसे जुड़े लोगों के भविष्य को अंधकारमय बना दे ।

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