ईश्वर कहाँ है – संत नामदेव का प्रेरक प्रसंग

sant namdev prerak prasang
हमारे देश में संतो की परम्परा रही है कि संत अधिक दिन तक एक स्थान पर नहीं ठहरते है । संत ईश्वर के फरिश्तों के रूप में सभी तक ईश्वर के सन्देश को पहुँचाने का काम करते है । ऐसे ही एक संत हुए है – संत नामदेव । संत नामदेव एक बार एक गाँव में ईश्वर की महिमा पर उपदेश दे रहे थे । तभी कहीं से के जिज्ञासु आ गया ।

“श्रोता तो बहुत मिलते है, लेकिन सच्चे जिज्ञासु विरले ही होते है ।”

उस जिज्ञासु ने संत नामदेव से पूछा – “ महाराज ! लोग कहते है, ईश्वर सभी जगह मौजूद है । मैंने खूब खोजा । मंदिर, मस्ज़िद, गुरुद्वारे सब एक कर दिए लेकिन ईश्वर को नहीं पा सका । कृपा करके आप बताने का कष्ट करें कि आखिर ईश्वर है कहाँ ?”

संत मुस्कुराये और बोले – “एक लौटा पानी और नमक की व्यवस्था करो ।” यह सुनकर लोगों की जिज्ञासा और बढ़ गई । सभी सोचने लगे, महाराज आज जरुर कोई जादू – चमत्कार दिखायेंगे । वहाँ बहुत सारे लोग खड़े थे । एक गया दोड़कर और नमक ले लाया और एक पानी का लौटा ले आया । संत नामदेव ने वह नमक उस लौटे में डालने के लिए कहा । नमक लौटे में डालते ही घुल गया ।

उन्होंने उस जिज्ञासु से पूछा – “ क्या इसमें तुम्हे नमक दिख रहा है ?”

जिज्ञासु बोला – “ नहीं महाराज ! नमक दिख तो नहीं रहा ।”

नामदेव बोले – “ तो इसे चखकर देखो ! इसमें नमक है या नहीं ?”

जिज्ञासु ने पानी चखा तो उसमें नमक था । उसने कहा – “ हाँ महाराज ! इसमें नमक है ।”

नामदेव बोले – “ अब इसे उबालने की व्यवस्था करो ।”

लोगों ने आस – पास से लकड़ी जमा कर दी और आग लगाई । लोटे तो गरम करते गये । सारा पानी भाप बनकर उड़ गया और आखिरकार उसमें नमक दिखने लगा ।

संत ने उस जिज्ञासु से पूछा – “ अब नमक दिख रहा है ।”

जिज्ञासु बोला – “ हाँ ! महाराज ! दिख रहा है ।”

संत बोले – “ ईश्वर भी इस संसार में इस नमक की तरह ही समाया है । जिस तरह नमक पानी में होते हुए भी दीखता नहीं उसी तरह ईश्वर भी इस संसार में सभी जगह समाया होते हुए भी दीखता नहीं । लेकिन जिस तरह पानी के साथ नमक का स्वाद लिया जा सकता है उसी तरह इस संसार की सेवा करके उस ईश्वर के संतोष रूपी प्रेम का रसास्वादन किया जा सकता है । अर्थात ईश्वर को अनुभव किया जा सकता है । यदि ईश्वर के दर्शन की ही इच्छा हो तो त्याग और तप से स्वयं को इतना तपाये कि सारे कषाय – कल्मष विनष्ट हो जाये तो ईश्वर भी दिखने लगेगा । जैसे पानी वाले नमक को तपाने पर वह दिखने लगता है । जब तक आत्मशोधन और आत्म मंथन नहीं किया जायेगा तब तक स्वर्ग में भी ईश्वर के दर्शन संभव नहीं ।”

अब वह जिज्ञासु समझ चूका था कि ईश्वर का वास्तविक स्वरूप और दर्शन क्या है ।