जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि – तीन कहानियाँ

jaisi drishti vaisi srishti hindi kahani
कथा है । समर्थ गुरु रामदास रामायण लिखते हुए अपने शिष्यों को सुनाते थे । अज्ञात रूप से हनुमानजी भी रामकथा का रसपान करने हेतु आने लगे । एक दिन अशोक वाटिका का प्रसंग था । हनुमान जी भी पुरानी यादों को ताजा होता देख मग्न हो रहे थे । तभी समर्थ गुरु रामदास ने कहा हनुमान जी ने अशोक वाटिका में सफ़ेद फुल देखे ।

यह सुनते ही हनुमान जी को अजीब लगा । वह तुरंत प्रकट हो गये और बोले महाराज ! आपने गलत लिखा है । मैंने सफ़ेद फुल नहीं लाल फुल देखे थे । अपनी पोथी में सुधार करो ।

यह देख समर्थ गुरु रामदास बोले –  प्रभु ! मैंने तो सही ही लिखा है । आप भूल गये होंगे ।

यह देख हनुमानजी बोले अजीब बात करते हो । मैंने देखा ! और मैं ही झूठा !

समर्थ गुरु बोले ठीक है ! आप श्री रामचन्द्रजी से पूछ आइये ।

तैश में आकर हनुमानजी गये रामचंद्र जी के पास । रामजी के पास जाकर बोले प्रभु ! मैंने अशोक वाटिका में जो फुल देखे थे वो सफ़ेद थे या लाल ?

रामजी बोले वह तो सफ़ेद थे ।

हनुमानजी अब अचरज से खुद को झूठा समझने लगे । तभी रामजी बोले हनुमान ! फुल सफ़ेद थे, लेकिन उस समय तुम क्रोध में थे, इसलिए तुम्हे लाल दिखाई दिए । तुम भी सही हो और रामदास भी सही है । जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि

इस छोटी सी कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि हमारा दृष्टिकोण ही संसार का स्वरूप तय करता है ।

महाभारत की कथा

एक बार गुरु द्रोणाचार्य ने दुर्योधन और युधिष्ठिर को अपने पास बुलाया और कहा – “जाओ ! अपने पुरे राज्य में घूमकर आओ और बताओं कि सबसे श्रेष्ठ व्यक्ति कौन है ?”

सुबह से शाम तक दुर्योधन और युधिष्ठिर अलग – अलग पुरे राज्य में घूमते रहे । दोनों शाम को गुरु द्रोणाचार्य के पास पहुंचे । द्रोणाचार्य ने पहले दुर्योधन से पूछा तो दुर्योधन बोला –  “ गुरुदेव ! मुझे तो लगता है, इस राज्य में क्या ? पुरे संसार में कोई श्रेष्ठ नहीं है । हर किसी में कोई न कोई कमी है ।”

इसके बाद गुरु द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर से भी यही बात पूछी तो युधिष्ठिर बोला – “ गुरुदेव ! संसार में हर कोई श्रेष्ठ है । प्रत्येक व्यक्ति में अपनी अलग ही योग्यता है । हर व्यक्ति अद्वितीय है । इसलिए सभी श्रेष्ठ है ।”

यह सुनकर सभी शिष्यों को उपदेश देते हुए गुरु द्रोणाचार्य बोले – “ इसे कहते है – जैसी दृष्टि, वैसी सृष्टि ! जैसा आपका दृष्टिकोण होता है वैसा ही आपको संसार दिखाई देता है ।”

किसान के मीठे आम – कहानी

एक बार एक राजा जंगल में शिकार करने के लिए गया । शिकार की खोज में राजा बहुत दूर निकल गया तथा अपने साथियों से भटक गया । वापस आने का रास्ता ढूंढने में उसे पूरा दिन हो गया लेकिन रास्ता नहीं मिला । थक हारकर राजा एक पेड़ की छाँव में विश्राम करने लगा । तभी उसे एक युक्ति सूझी कि क्यों ना पेड़ पर चड़कर रास्ते की तलाश की जाये ! वह तुरंत पेड़ पर चढ़ गया ।

राजा को कोई रास्ता तो नहीं दिखा लेकिन कुछ दूर हरे – भरे लहराते खेत दिखाई दिए । राजा तुरंत पेड़ से उतरा और खेतो की दिशा में चल दिया । जब राजा खेत पर पहुंचा तो उसने देखा कि वहाँ के किसान है । राजा किसान के पास जाकर रास्ता पूछने लगा । राजा ने भेष बदल रखा था इसलिए किसान उसे पहचान नहीं पाया ।

किसान ने राहगीर समझकर थका हुआ जान राजा को अपनी झोपड़ी में थोड़ी देर विश्राम करने के लिए कहा । राजा भी दिनभर की दौड़ धुप से थक चूका था, इसलिए झोपडी में जा बैठा । इतने में किसान उस अजनबी राहगीर के लिए मीठे आमों का रस ले आया ।

राजा ने मीठे आम का रस पिया तो आनंदित हो उठा । उसने किसान से एक और गिलास लाने के लिए कहा । किसान ख़ुशी – ख़ुशी एक बार और रस निकालने गया । इस बीच राजा ने देखा कि किसान के पास बहुत सारे आम के पेड़ है । राजा सोच रहा था – “ यदि ये वृक्ष राज परिवार के कब्जे में कर लिए जाये तो प्रतिदिन ऐसा रस पीने के लिए मिल सकता है ।”

इतने में किसान रस ले आया । जब इस बार राजा ने रस पिया तो उसे बहुत कड़वा लगा । उसने इसका कारण किसान से पूछा । किसान बहुत समझदार था । वह सारी बात समझ गया । किसान बोल – “ भाई ! जब पहली बार आप रस पिए उस समय हमारे राजा के विचार बहुत नेक थे । इसलिए रस मीठा लगा । जब दूसरी बार आप रस पिए तो उस समय हमारे राजा के विचार नेक नहीं थे । इसलिए रस मधुर नहीं लगा ।”

राजा अपनी गलती समझ चूका था । वह उस किसान को प्रणाम करके वहाँ से चल दिया ।