मन की पवित्रता अनिवार्य है – Pragya Story

Purity of thought Vicharo ki pavitrata
एक दिन एक आचार्य अपने शिष्यों को ब्रह्मचारी के गुण बता रहे थे कि ब्रह्मचारी को हमेशा चाहिए कि स्त्रियों से सावधान रहना चाहिए । अष्ट मैथुन को मन – वचन – कर्म से त्याग देना चाहिए । हमेशा ईश्वर का चिन्तन करना चाहिए ।

उसके दुसरे दिन आचार्य अपने एक शिष्य के साथ एक गाँव से दुसरे गाँव भिक्षा के लिए जा रहे थे । तभी रास्ते में उन्होंने नदी किनारे बैठी एक लड़की को देखा । पैर में चोट लगने की वजह से वह चलने में असमर्थ थी । उसने आचार्य से विनती की कि उसे नदी पार करवा दी जाये । आचार्य को उसपर दया आ गई । उन्होंने उसे अपनी पीठ पर बिठाया और उसके घर तक छोड़ दिया ।

भिक्षा लेकर जब आचार्य और उनका शिष्य आश्रम पहुंचे तो आचार्य ने देखा कि शिष्य का स्वभाव थोड़ा रुखा था । तीन दिन तक शिष्य कुछ नहीं बोला । आखिर एक दिन आचार्य ने उससे अपने रूखेपन का कारण पूछा तो शिष्य बोला – “ आचार्य ! हम सब शिष्य आप पर इतना भरोसा करते है और आपके कहे अनुसार संयम – नियमो का पालन करते है लेकिन आप ! आपने एक योगी होते हुए एक स्त्री का स्पर्श किया । आप योगी नहीं हो सकते । आपने हम सबको धोखा दिया है ।

आचार्य हँसे और बोले – “ वत्स ! मेरा योग तो अब भी उस ईश्वर से बरक़रार है लेकिन मैं देख रहा हूँ कि तुम्हारा योग जरुर डगमगा रहा है । मैंने तो उसे उसकी सहायता के लिए कुछ पल अपनी पीठ पर बिठाया था । लेकिन तुम तो उसे अब भी अपने मन में बिठाये हुए हो । मन की पवित्रता मुख्य है वत्स ! मन की पवित्रता !”

शिष्य को अपनी गलती समझ आ गई ।

दोस्तों ! आवश्यकता पड़ने पर स्त्री से बात करना, उनका स्पर्श करना बुरा नहीं लेकिन कामना पूर्वक स्त्री के विषय में मनन करना एक साधक के लिए बहुत घातक है । अक्सर हम बात की गहराई को गंभीरता से समझने के बजाय उसके नकारात्मक पक्ष को लेकर ही संतुष्ट हो जाते है । और कभी कभी उस व्यक्ति को दोषी समझने लगते है, जिसने असल में कोई गलती ही नहीं की । अक्सर लोग गलत फहमी के शिकार होकर वो कर बैठते है, जिसके लिए बाद में पछताने के अलावा और कोई चारा नहीं होता । इसलिए जब कभी – भी आपके मन में इस प्रकार के विचार आये, या ऐसी नकारात्मकता घर कर जाये । तुरंत उसका समाधान कर ले । हो सकता है आप उस बात के लिए भीतर ही भीतर घुट रहे हो, जिसका वास्तव में कोई अस्तित्व ही ना हो ।

अक्सर लोग स्त्री – पुरुष को एक साथ देखकर अजीब – अजीब सी कल्पनाएँ करने लगते है । लेकिन यह भी तो हो सकता है कि वह दोनों भाई – बहिन हो ।

स्वामी रामतीर्थ का आत्मवत सर्वभूतेषु

स्वामी रामतीर्थ संन्यास से पूर्व जिस मुहल्ले में रहते थे उसमें वैश्याएं भी रहती थी। मुहल्ले वालों ने तंग आकर सरकार से शिकायत कर दी कि इन वैश्याओं को यहाँ से हटाया जाय। शिकायत पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए रामतीर्थ से भी कहा गया।

लेकिन उनने अपनी असमर्थता प्रकट करते हुए कहा – “मैंने आज तक यहाँ कोई वैश्या नहीं देखी। हर घर में इधर तो मृदुल मनोहर बहने ही रहती हैं ।

कहानी का सारांश यह है कि यदि हम दुनिया में बुराई खोजने लगे तो बुराइयों की कमी नहीं है । ठीक इसके विपरीत अगर हम दुनिया में अच्छईयाँ खोजे तो अच्छाईयों की भी कमी नहीं है । फर्क केवल हमारे दृष्टिकोण का है । जब तक हम किसी में शिकायत ढूंढते है तब तक हमें उसकी अच्छाईयाँ नजर नहीं आती लेकिन जैसे ही हम किसी के गुणों पर अपना ध्यान केन्द्रित करते है । उसकी गलतियाँ अपने आप नजरअंदाज करने लगते है ।