एक बार एक संत जंगली रास्ते से जा रहे थे तभी कहीं से एक आदमी उनके पीछे – पीछे चलने लगा । वह व्यक्ति संत को भद्दी गालियाँ बक रहा था । लेकिन संत शांत भाव से अपने रास्ते चले जा रहे थे । जंगली रास्ता समाप्त होते ही संत को एक बस्ती दिखाई दी । वह वही ठहर गये और बोले – “ भाई ! तुम्हे जितनी गालियाँ देनी है यहाँ दे लो ।”
वह व्यक्ति बोला – “ क्यों ?”
संत बोले – “ आगे बस्ती है और वहाँ के लोग मुझे मानते है । अगर उनके सामने तुमने गालियाँ दी तो शायद तुम्हारे साथ अच्छा न हो ।”
तो अपेक्षापुर्वक वह व्यक्ति बोला – “ तो इससे तुझे क्या ?”
संत के समझाने पर भी वह व्यक्ति नहीं माना । उसने अपने गालियाँ देने का सिलसिला जारी रखा । जैसे ही बस्ती में पहुँचा लोगों ने उसे संत को गालियाँ देते देख लिया । उसकी जमकर पिटाई कर दी ।
संत महोदय आगे जा रहे थे । जैसे ही उन्होंने देखा तो वह तुरंत उसके पास आये और उसे छुड़ाया ।
वह व्यक्ति बोला – “ मैं तो आपको गालियाँ दे रहा था फिर आपने मुझे क्यों छुड़ाया ?”
संत प्रेम से बोले – “ भाई ! तुम इतनी देर से मेरे पीछे – पीछे आ रहे हो । गाली में ही सही लेकिन तुम मुझे याद कर रहे थे । इसलिए तुमसे स्नेह हो गया ।”
इतना सुनकर वह व्यक्ति संत के चरणों में गिर पड़ा ।
संत की महानता
एक दिन एक व्यक्ति अपनी छोटी सी झोपडी में सो रहा था । झोपड़ी इतनी छोटी थी कि उसमें केवल एक व्यक्ति सो सकता था । उस दिन बहुत ही मुसलाधार वर्षा हो रही थी । तभी अचानक कहीं से एक राहगीर उस व्यक्ति के द्वारे आया और कहने लगा – “ क्या मैं अन्दर आ सकता हूँ ?”
यह सुनकर वह व्यक्ति बोला – “ आइये ! जगह तो केवल इतनी है कि एक व्यक्ति सो सके । लेकिन हम दोनों बैठ सकते है ।”
तभी थोड़ी देर में एक राहगीर और आकर पूछने लगा – “यदि अंदर जगह हो तो मुझे अन्दर ले लीजिये ।”
वह व्यक्ति बोला – “ आइये भाई ! आप बैठ तो नही पाएंगे लेकिन हम तीनों खड़े रह लेंगे ।” इस तरह वह तीनों बारिश बंद होने तक खड़े रहे ।
यह झोपड़ी वाला व्यक्ति और कोई नहीं । संत अलवार थे । जो दूसरों की सहायता के लिए अपने सुख की परवाह न करे । असल में वही महान होता है । संत अलवार कह सकते थे कि भाई ! अभी मैं सो रहा हूँ, आप कहीं और जाइये । लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया । परिस्थिति को समझा और अजनबी व्यक्ति की सहायता की ।
किसी ने क्या खूब कहा है – “ किसी के काम जो आये उसे इन्सान कहते है, पराया दर्द अपनाये उसे इन्सान कहते है ।”
जिन्हें दुसरो के दर्द की परवाह नहीं होती, वह इन्सान नहीं राक्षस होते है । ऐसे राक्षस बस और ट्रेन कहीं भी मिल सकते है, जो कुछ पल के सफ़र में भी अपना हक़ ज़माने से बाज नहीं आते ।