अपनी अंतरात्मा का सम्मान करो

अमिरुल्लाह के उपदेश
एक प्रसिद्ध सूफी संत अमिरुल्लाह हुए है । लोग इनको फ़क़ीर अमीर के नाम से जानते थे । हिन्दू – मुस्लिम सभी संप्रदाय के लोग मन की शांति प्राप्त करने के लिए इनके पास जाते थे । एक दिन एक युवक अमीर बाबा के पास आया और प्रणाम करके बोला – “ बाबा ! मुझे अपना शिष्य बना लीजिये !।”
अमीर बाबा ने उसे बड़े ध्यान से देखा और बोले – “ अगर तुम शिष्य ही बनना चाहते हो तो पहले शिष्य की जिन्दगी का ढंग सीखो ।”

अचरज में पड़कर युवक बोला – “ मैं कुछ समझा नहीं ! बाबा । शिष्य की जिन्दगी का ढंग क्या होता है ?”

अमीर बाबा बोले – “ बेटा ! सच्चा शिष्य अपनी आत्मा का सम्मान करता है । वह तुच्छ लोभ – लालसाओं के लिए और झूठे अभिमान और घमंड के लिए कभी अपने आप को धोखा नहीं देता ।”

और स्पष्ट करते हुए अमीर बाबा बोले – “ इस दुनिया में हर कोई अच्छा होने का दिखावा करता है । कोई अच्छा दिखने के लिए तरह – तरह कपड़े और सजावटी सामान का प्रयोग करता तो कोई सच्चा बनने के लिए चालाकी से प्रत्यक्ष अच्छे काम करके दुनिया को दिखाने की कोशिश करता । मनुष्य समझता है कि वह खुदा से छुपकर उलटे – सीधे काम कर सकता है लेकिन वह भूल जाता है । वह भूल जाता है कि ईश्वर के लिए ना तो दीवारे बाधक है न ही तुम्हारा अंतःकरण । ईश्वर सब देखता है ।”

सच्चा शिष्य वही है जो अपनी अंतरात्मा में उपस्थित उस परमात्मा का सम्मान करना सिख ले । अगर तुम इतना कर सको तो मेरे शिष्य हो सकते हो ।

इतना सुनकर वह युवक समझ चूका था । अगर मैं हर समय ईश्वर की निगरानी में जीना शुरू कर दूँ तो मुझे किसी गुरु की क्या आवश्यकता ?

इस कहानी का सारांश ये है कि जो सच्चा शिष्य होता है उसे कोई गुरु ढूढने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती । क्योंकि उसका गुरु स्वयं ईश्वर होता है ।