दूसरों से आशायें दुखदायी है कहानी

Dont depend on others - PragyaStory
एक शहर में धनपति नाम का एक व्यापारी रहता था । धनपति के इकलौता पुत्र था कुलदीप । धनपति को अपने पुत्र कुलदीप से बड़ी ही अपेक्षाएं थी । दोनों पति – पत्नी अपने इकलौते पुत्र की परवरिश बड़े ही लाड़ प्यार से कर रहे थे । लेकिन कुलदीप था निकम्मा, उसे ना तो पढ़ने में मन लगता और न ही किसी अन्य कार्य में । वह इतना बेपरवाह हो चूका था कि कई बार फ़ैल हो चूका था । लेकिन फिर भी उसके पिता की आशा थी कि एक दिन वह समझदार हो जायेगा और अच्छे नंबर से पास भी होगा ।

एक दिन कुलदीप स्कूल से सीधा घर आया । वह अक्सर अपने दोस्तों के साथ खेलने निकल जाया करता था लेकिन आज उसे इस तरह जल्दी आया पिता को आश्चर्य हुआ । जैसे उसने घर में प्रवेश किया । बाहर से आने के कारण उसे घर में कुछ साफ – साफ दिखाई नहीं दिया । दरवाजे पर कुछ सामान पड़ा था अतः ठोकर खाकर वह गिर पड़ा ।

उसके गिरते ही दोनों पति – पत्नी अपने लाड़ले को उठाने के लिए दोड़े लेकिन यह क्या ? बेटे ने उन्हें रोकते हुए कहा – “ रहने दीजिये ! मैं उठ सकता हूँ ।”

यह सुनते ही दोनों पति – पत्नी एक दुसरे का मुंह ताकने लगे । फिर भी माँ ने पूछा – “ कहीं चोट तो नहीं आई ?”

तेजी से जवाब देते हुए कुलदीप बोला – “ बोला न ! ठीक हूँ, जिन्दा हूँ ।” यह सुनकर दोनों दम्पति उठकर अपने – अपने काम में लग गये ।

उस दिन से कुलदीप का व्यवहार बिलकुल बदला हुआ सा लग रहा था । उसके माता – पिता को लग रहा था कि कुलदीप अब बच्चा नहीं रहा । लेकिन एक दिन में कोई इतना समझदार कैसे हो सकता है । वह प्रतिदिन अपना हर काम खुद से करता और समय से स्कूल चला जाता था ।

आखिर एक दिन उसके पिता ने उसे पूछ ही लिया – “ बेटा ! क्या बात है ? तुम हमें इस तरह उपेक्षित (इग्नोर) क्यों कर रहे हो । क्या हमसे कोई गलती हुई है ? अब तुम हमारी कोई मदद लेना पसंद नहीं करते, क्यों ?”

लम्बी साँस लेते हुए कुलदीप बोला – “ पिताजी ! गलती तो हुई है । आपसे भी और मुझसे भी । मैं अपनी गलती का सुधार कर रहा हूँ ।”

पिता बोला – “ कैसी गलती ?”

कुलदीप ने सब विस्तार से बताते हुए कहा – “ पिताजी ! परसों जब मैं स्कूल से आ रहा था तो रास्ते में सामने से एक बुजुर्ग माथे पर फलों की टोकरी लिए हुए आ रहे थे । संयोग से मेरी सीध में आकर उनको ठोकर लगी तो वो नीचे गिर पड़े । मैं पास ही था इसलिए उन्हें उठाने के लिए दौड़ा । लेकिन जब मैं उन्हें उठाने लगा तो उन्होंने मुझे ये कहते हुए मना कर दिया – “ धन्यवाद बेटा ! जो तुम मुझे उठाने के लिए आगे बड़े । लेकिन मैं उठ सकता हूँ ।” जब वह उठकर बैठ गये तो मैंने उनसे पूछा कि मैं तो आपकी सहायता करना चाहता था । आपने मुझे मना क्यों किया ?। तो उन्होंने बताया कि बेटा ! जब तक मेरे हाथ पैरो में जान है, मैं और किसी से आशा नहीं बांधना चाहता और तुम्हे भी सलाह देता हूँ कि दुसरो से आशा कभी मत रखना । क्योंकि दूसरों से आशा हमेशा दुखदाई होती है ।”

तो मैंने पूछा – “ क्या अपने पिता से भी आशा रखना दुखदाई है ?” तो वह हंसने लगे और बोले – “ बेटा ! तुम्हारी ही तरह मेरा भी एक बेटा था । मैंने उसे बहुत पढ़ाया – लिखाया और अपने बुढ़ापे का सहारा बनाया । बहुत सपने देखे थे उसको लेकर, बहुत आशाए थी मेरी उससे लेकिन एक सुबह ऐसी आई मेरे जीवन में कि मैंने सपने देखना छोड़ दिया ।” इतना कहकर वो चुप हो गये ।

लेकिन फिर से मैंने पूछा ऐसा क्या हुआ – “ तो वह बोले – बेटा ! उस सुबह जब मैं उठा तो मैं एक वृद्धाश्रम में था । जहाँ सभी सुख – सुविधाएँ थी लेकिन मेरा बेटा नहीं था । जब मैं अपने घर गया तो वहाँ एक सज्जन मिले जिन्होंने बताया कि मेरा बेटा वो घर बेचकर शहर चला गया है । तबसे मैं ऐसे ही फल बेचकर अपना गुजारा करता हूँ ।

इतने में पिताजी बोले – “ हा ठीक है ! माना कि उस बुजुर्ग के साथ ठीक नहीं हुआ लेकिन ये जरुरी नहीं कि सबके बेटे ऐसे हो ।”

इतने में कुलदीप बोला – “ सही कहा पिताजी ! सबके बेटे एक जैसे नहीं हो सकते लेकिन जब मैंने उस बुजुर्ग से उनके बेटे का नाम पूछा तो मेरे पैरों तले से जमीन खिसक गई ।”

उन्होंने बताया – “धनपति” वो महान बेटे आप ही है पिताजी !

इतना सुनने के बाद धनपति की आँखों से आंसू बहने लगे । उसे अपनी गलती का अहसास हो चूका था ।
दोस्तों ! आपको नहीं लगता ! कभी कभी बच्चे बड़ो से ज्यादा समझदार होते है ।