ईश्वर की दया पर संदेह क्यों ?

malik ki daya hindi kahani
एक बार एक अमीर सेठ के यहाँ एक नोकर काम करता था । अमीर सेठ अपने नोकर से तो बहुत खुश था । लेकिन जब भी कोई कटु अनुभव होता तो वह ईश्वर को बहुत गालियाँ देता था ।

एक दिन वह अमीर सेठ ककड़ी खा रहा था । संयोग से वह ककड़ी कच्ची और कड़वी थी । सेठ ने वह ककड़ी अपने नोकर को दे दी । नोकर ने उसे बड़े चाव से खाया जैसे वह बहुत स्वादिष्ट हो ।

अमीर सेठ ने पूछा – “ ककड़ी तो बहुत कड़वी थी । भला तुम ऐसे कैसे खा गये ?”

नोकर बोला – “ आप मेरे मालिक है । रोज ही स्वादिष्ट भोजन देते है । अगर एक दिन कुछ कड़वा भी दे दिए तो उसे स्वीकार करने में क्या हर्ज है ।

अमीर सेठ अपनी भूल समझ गया । अगर ईश्वर ने इतनी सुख – सम्पदाएँ दी है, और कभी कोई कटु अनुदान दे भी दे तो उसकी सद्भावना पर संदेह करना ठीक नहीं ।

वह नोकर और कोई नहीं । प्रसिद्ध चिकित्सक हकीम लुकमान थे ।

असल में यदि हम समझ सके तो जीवन में जो कुछ भी होता है, सब ईश्वर की दया ही है । ईश्वर जो करता है अच्छे के लिए ही करता है ।

ईश्वर विश्वास की पराकाष्ठा


ईश्वर प्रेम की कहानी
एक बार दो व्यक्ति व्यापार के लिए दुसरे देश गये । उन दोनों में से एक था पक्का आस्तिक और एक था पक्का नास्तिक । आस्तिक अपने जीवन में हमेशा ईश्वर को धन्यवाद देता था । चाहे उसके साथ अच्छा हो या बुरा । नास्तिक हमेशा ईश्वर को कोसता रहता था ।

चलते – चलते आस्तिक व्यक्ति एक खाई में गिर गया । जिससे उसकी एक टांग बेकार हो गई । लेकिन फिर भी वह ईश्वर को धन्यवाद दे रहा था । यह देख नास्तिक को अचरज हुआ । उसने पूछा – “ देख ! एक तो तेरी टांग टूट गई और तू है कि ईश्वर को धन्यवाद दे रहा है ।” इस पर आस्तिक बोला – “ हां भाई ! ईश्वर का शुक्रिया जो उसने मेरी एक टांग को सलामत छोड़ दिया । वो चाहता तो इसे भी तोड़ सकता था लेकिन उसने ऐसा नहीं किया । ईश्वर सचमुच बहुत दयालु है ।”

अब वह आस्तिक व्यक्ति लंगड़ाकर चल रहा था कि आगे दूसरी खाई में गिर पड़ा । इस बार उसकी दूसरी टांग भी टूट गई । इस बार भी वह ईश्वर का शुक्रिया अदा कर रहा था । यह देख नास्तिक आग बबूला हो गया । वह तुनककर बोला – “ पागल हो गये हो क्या ? तुम्हारी दोनों टांगे टूट चुकी है और तुम हो कि ऐसे निर्दय ईश्वर का शुक्रिया अदा कर रहे हो ।” इस पर आस्तिक व्यक्ति बोला – “ हाँ भाई ! ईश्वर चाहता तो मेरे हाथ भी तोड़ सकता था लेकिन उसने ऐसा नहीं किया । इसलिए ईश्वर बहुत दयालु है । वह बड़े प्रेम से मुझे मेरे पुराने पापों का दण्ड दे रहा है । तुम इतनी मदद करो कि दो लाठियों की व्यवस्था कर दो ताकि बैसाखी बनाकर चल सकूं” । नास्तिक मित्र ने दो लाठियों की व्यवस्था कर दी ।

थोड़ा आगे चलने पर वह ओंधे मुंह गिरा । उसके दोनों हाथ टूट चुके थे । इस बार भी वह पड़े – पड़े ईश्वर को धन्यवाद दे रहा था । यह देख नास्तिक मित्र गुस्से से लाल होकर बोला – “ कैसे आदमी हो तुम ? अब तुम चल भी नहीं सकते और ईश्वर को धन्यवाद दे रहे हो ।”

इस पर आस्तिक व्यक्ति बोला – “ भाई ! ईश्वर ने मुझे अभी भी जिन्दा रखा है । इतना काफी है ।”

यह सुनकर नास्तिक व्यक्ति झुंझलाकर बोला – “ ठीक है ! तो अब मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं करने वाला । मांग लेना अपने ईश्वर से मदद ।” इतना कहकर वह नास्तिक व्यक्ति आगे बढ़ गया ।

थोड़ी देर बाद वहाँ से एक राजा की सवारी निकल रही थी । उसने उस व्यक्ति को वहाँ पड़ा देख उसकी मदद करने की सोची और उसे अपने साथ राज महल ले गया । राजमहल में राजवैद्य ने उसकी चिकित्सा की और वह पूरी तरह से ठीक हो गया । राजा ने उसे अपने यहाँ नोकरी पर रख लिया ।

जब कुछ दिनों बाद वह नास्तिक व्यापारी उस राज्य में व्यापार करने आया तो उसे शाही सेना में देखकर चकित रह गया । नास्तिक उसके पास गया और उससे पूछा – “ ये सब कैसे हुआ ?”

तो आस्तिक मित्र बोला – “ भाई ! ईश्वर बहुत दयालु है । जो हुआ सब उसी की कृपा है ।”
अब नास्तिक भी आस्तिक हो गया ।

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