त्याग से बढ़कर वैराग्य Hindi Story

त्याग और वैराग्य की कहानी
निरंतर सांसारिक भोगों में रमण करने से राजकुमार सत्यजित का मन भोगों से उब चूका था । उन्होंने युवावस्था में ही सबकुछ त्याग कर सन्यास लेने का निश्चय कर लिया । एक रात जब सभी गहरी नींद में सो रहे थे तब राजकुमार चुपके से जंगल की ओर भाग गये । लेकिन क्या मन की शांति के लिए इतना काफी था ? आइये देखते है !

महाराज ने जब प्रातःकाल यह समाचार सुना तो उन्हें आश्चर्य हुआ । एक भोगी का एक रात में योगी बन जाना उन्हें अजीब लगा । राजकुमार की खोज में जा रहे सैनिको को उन्होंने रोक दिया और बिना किसी शौक के महाराज राजकार्य में लग गये ।

इधर राजकुमार जंगल में भटक रहा था । जंगल के फल उसकी क्षुधा शांत करने में असमर्थ थे । अतः वह भोजन के लिए किसी घर की तलाश में था । तभी राजकुमार सत्यजित ने देखा कि कुछ दूर पहाड़ी पर एक झोपड़ी है । जब वह उस झोपड़ी पर पहुंचा तो वहाँ एक किसान और उसकी बेटी रहते थे । राजकुमार ने कुछ खाने के लिए माँगा । किसान ने सामान थमाते हुए कहा – “ तूम खाना बनाओ, मैं और मेरी बिटिया पानी लेकर आते है ।”

किसान और उसकी बेटी पानी लेने चले गये । जब तक वह पानी लेकर आये, राजकुमार ने खाना बना लिया था । तीनो ने भोजन किया और सो गये ।

चांदनी रात थी । भीनी – भीनी हवाएं चल रही थी । राजकुमार का मन विचलित हो रहा था । उसका ध्यान बार – बार किसान की बेटी की तरफ जा रहा था । तभी अचानक हवा का एक तेज झोंका आया और किसान की बेटी का पल्लू उड़कर राजकुमार के उपर जा गिरा । झोपड़ी छोटी थी । अब राजकुमार उठकर किसान की बेटी के पास गया । लेकिन ये क्या ? उसका चेहरा देखते ही राजकुमार की कामना का नशा छू – मंतर गया ।

जी हाँ ! वह किसान की बेटी और कोई नहीं । उसी राजकुमार की पत्नी थी और वह किसान राजकुमार का पिता था । यह दोनों भेष बदलकर राजकुमार के क्षणिक वैराग्य के टूटने की प्रतीक्षा में थे । यह सब देख राजकुमार बहुत शर्मिंदा हुआ । वह अपराध बोध से भरकर अपने पिता से क्षमा याचना करने लगा । तो उसके पिता बोले – “ बेटा ! तेरी गलती इतनी सी है कि तूने क्षणिक त्याग को वैराग्य समझकर सन्यास लेने की भूल की । वैराग्य और त्याग में बहुत बड़ा अंतर है । त्याग किया जाता है और वैराग्य स्वतः होता है । जो किया जाता है, वह कभी स्थाई नहीं होता लेकिन जो स्वतः होता है, वह हमेशा स्थाई होता है ।” असली वैराग्य तो संसार में रहकर संसारिकता से विलग रहने को कहते है ।”

ज्ञान और विवेक पूर्वक किये गये त्याग को वैराग्य कहते है । जैसे जब हमें कोई बड़ी चीज़ मिल जाती है तो छोटी चीज़े स्वतः छूटने लगती है । उसी तरह जब हमें पारमार्थिक चीजों ने आनंद आने लगता है तो सांसारिक चीज़े स्वतः छूटने लगती है । इसी को वैराग्य कहते है । अपनी अहंकार की पूर्ति के लिए किये गये त्याग को वैराग्य समझना बहुत बड़ी भूल है । यह केवल अहमन्यता को बढ़ावा देना है । ऐसी मानसिकता के लोग केवल अपना महिमा मंडन करने के लिए छद्म त्याग का आडम्बर रचते है और जब पकड़े जाते है तो बुरी तरह शर्मिंदा होते है ।