डसो मत, पर डराना भी ना छोड़ो

samp or mahatma ki kahani
एक गाँव के रास्ते में एक बड़ा ही विषैला सांप रहता था । आये दिन किसी न किसी को डसकर वह आस – पास के गाँवो की अर्थियाँ उठवाता रहता था । उसका आतंक लोगों के दिलों में इतना बैठ गया कि लोगों ने उस रास्ते से आना – जाना ही बंद कर दिया ।

एक दिन संयोग से उस गाँव में एक महात्मा जी का आगमन हुआ । गाँव वालों ने खूब सत्कार किया । जब महात्मा जी जाने लगे तो उन्होंने वह सर्प वाला रास्ता चुन लिया । यह देखकर गाँव के लोगों ने महात्माजी को समझाया कि उस रास्ते पर भयंकर विषैला सर्प रहता है । वह उस रास्ते से न जाये । अन्यथा सर्प उनको भी डस लेगा । लेकिन महात्मा ठहरे निर्भय उन्होंने कहा – “ आप निश्चिन्त रहिये ! सर्प मुझे नहीं डसेगा ।”

महात्मा उस रास्ते चल दिए । महात्माजी को आता देख क्रूर सर्प शिकार के लिए तैयार हो गया । महात्मा जी जा ही रहे थे कि अचानक सर्प उनके सामने आकर फुफकारने लगा । लेकिन महात्माजी नहीं डरे । मुस्कुराते हुए नीचे बैठे और उससे बातें करने लगे । उन्होंने सर्प को उसके पिछले जन्म का दृश्य दिखाया और कहा – “देख लिया ! तुम्हारे इसी क्रूर स्वभाव के कारण तुम्हे सर्प योनी में आना पड़ा और अब भी तुम ऐसे ही कर्म कर रहे हो ? अपना ये क्रूर स्वभाव छोड़ दो ताकि तुम्हे अगले जन्म में अच्छी योनी मिले ।”

महात्मा की बात सर्प को समझ आ गई । उसी दिन से उसने सबको काटना बंद कर दिया । महात्मा के सकुशल निकल जाने से लोगों का विश्वास बढ़ गया । लोगों को लगा कि महात्माजी ने सर्प पर कोई जादू कर दिया है । इसलिए अब सभी निडर होकर सर्प के निकट आने लगे । और सर्प भी महात्माजी की आज्ञानुसार अपना क्रूर स्वभाव छोड़ चूका था । परिणाम यह हुआ कि लोग अब उसके ऊपर पैर रखकर भी निकल जाते । बच्चे जहाँ भी उसे देखते पूंछ पकड़कर खेलने लगते । कुछ ही दिनों में सर्प की ये हालत हो गई कि उसका चलना फिरना मुश्किल हो गया । बिचारा इतना कमजोर हो गया कि अपना खुद का भोजन भी नहीं जुटा पाता ।

कुछ दिनों बाद फिर उन्हीं महात्माजी का फिर से गाँव में आगमन हुआ । जब वह दुबारा उसी रास्ते से निकले तो उन्होंने देखा कि सर्प घायल अवस्था में एक पेड़ के नीचे पड़ा अंतिम सांसे ले रहा है । बिचारे को चारों तरफ से चीटियाँ नोच – नोच कर खा रही थी । ऐसी दयनीय दशा देखकर दुखी होते हुए महात्मा ने पूछा – “ ये सब कैसे हुआ ?”

रोते हुए सर्प ने कहा – “ आपके आदेश का पालन करने से । जबसे आपकी बात सुनी और डसना छोड़ दिया तबसे ये दुष्ट मनुष्य और इसके बच्चे मुझसे नहीं डरते है । मेरे ऊपर पैर रखते है और मुझसे खेलते है ।”

इसपर महात्माजी बोले – “ अरे भोले भंडारी ! मैंने डसना छोड़ने के लिए कहा था, डराना नहीं ।” महात्मा जी ने उस सर्प की सहनशीलता देखते हुए उसे मुक्ति प्रदान की ।

इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि हमें धर्म और योग शास्त्रों की बातों का अनुसार तो करना चाहिए लेकिन उन्हें अन्यथा नहीं लेना चाहिए । कुछ लोग अहिंसा के नाम पर अत्याचार का विरोध नहीं करते तो यह गलत है । यह वही सर्प वाली गलती है, जिसने भारतीय धर्म और संस्कृति को खोखला किया हुआ । सीधा होना अच्छी बात है लेकिन इतना भी सीधा नहीं होना चाहिए कि लोग आपका गलत इस्तेमाल करने लगे । दूसरों पर विश्वास करना अच्छी बात है लेकिन अंधविश्वास करना बेवकूफी है और इसका हर्जाना आपको आज नहीं तो कल चुकाना पड़ेगा । इसलिए धर्म के मर्म को समझे और शास्त्रों की शिक्षाओं और व्यवहारिक जीवन की शिक्षाओं के बीच समता बिठाकर चले ।