चमत्कारी दीपक की कहानी

chamatkari deepak ki kahani
एक नगर में एक बड़े ही नामी महात्मा रहते थे । लोग अक्सर उनके आश्रम धर्म चर्चा के लिए जाया करते थे । महात्मा जी के तर्कपूर्ण और सूझ बुझ भरे जवाब पाकर लोग अपना अहोभाग्य मानते थे । लेकिन कुछ लोगों की शिकायत थी कि वह गृहस्थ के कार्यों में बहुत अधिक व्यस्त रहते है इसलिए प्रतिदिन सत्संग के लिए महात्मा जी के आश्रम नहीं आ सकते । अतः उनकी प्रार्थना थी कि महात्माजी उनके लिए एक छोटी सी पुस्तक लिखे जिसमें गृहस्थ जीवन में रहते हुए सत्संग का लाभ मिल सके । महात्माजी इस बात के लिए राजी हो गये ।

लोगों ने राजा से कहकर कागज, कलम और प्रकाश के लिए दीपक आदि की व्यवस्था करवा दी । दिनभर तो महात्माजी दिन – दुखियों के सेवा – कार्य में लगे रहते थे । सुबह – शाम को वह अपने शिष्यों को ज्ञान का उपदेश देते थे । तपस्वी होने के नाते महात्माजी बहुत कम सोते थे । अतः पुस्तक लिखने के लिए उन्होंने रात्रि का समय उचित समझा ।

रात्रि में जल्दी उठकर नित्य कर्मादि से निवृत होकर महात्माजी पुस्तक लिखने बैठ जाते थे । यही महात्माजी का प्रतिदिन का कर्म था । दो शिष्य महात्माजी के ज्ञान से बड़े ही प्रभावी थे । एक रात वह दोनों शिष्य भी जल्दी उठकर देखने लगे कि आखिर महात्माजी इतनी ज्ञानपूर्ण बाते इतनी जल्दी कैसे लिख लेते है ?

महात्माजी उठे और दीपक जलाया और नित्य कर्मादि से निवृत हो स्नान – ध्यान करके महात्माजी ने उस दीपक को बुझा दिया और एक दूसरा दीपक जलाया और पुस्तक लिखने बैठ गये । उनकी दौड़ती कलम को देख शिष्य आपस में बात करने लगे – “ जरुर यह दीपक चमत्कारी दीपक है । इसलिए महात्माजी इसी की रौशनी में लिखते है ।”

एक दिन वह दोनों शिष्य महात्माजी के पास गये और बोले – “ गुरूजी ! कुछ समय के लिए आप अपना चमत्कारी दीपक हमे दे सकते है ! हम भी कुछ लिखना चाहते है ।”

अपने शिष्यों की ऐसी अजीब बात सुनकर महात्माजी आश्चर्य से उनकी ओर देखने लगे और पूछा – “ कौनसा चमत्कारी दीपक ?”

दबी हुई आवाज में शिष्य बोले – “वही दीपक जो रोज आप पुस्तक लिखने के लिए उपयोग करते है ।”
महात्माजी बोले – “ अरे वो कोई चमत्कारी दीप नहीं है, वो राज्य का दीपक है, जो विशेषकर मुझे पुस्तक लिखने के लिए दिया गया है । उसकी रोशनी ज्यादा होती है, इसलिए मैं उसके प्रकाश में पुस्तक लिखता हूँ, बाकि समय में अपने निजी कार्य के लिए मैं आश्रम का दीपक उपयोग में लेता हूँ । वो दीपक केवल राजकार्य के लिए ही उपयोग में लाया जा सकता है । इसलिए मैं तुम्हे वो दीपक नहीं दे सकता ।”

शिष्य हक्के बक्के होकर एक दुसरे के चेहरे को देखने लगे और बोले – “ नहीं नहीं गुरूजी ! अब नहीं चाहिए हमें कुछ, हमें कुछ नहीं लिखना और जाकर सो गये ।”

शिक्षा – हमारा मन ऐसा है कि जहाँ भी कुछ असामान्य होता है, हम उसे चमत्कार समझने लगते है । जबकि वह किसी की मेहनत और बुद्धिमत्ता भी हो सकती है । इसलिए चमत्कारों के झमेले में न उलझे और वास्तविकता को समझे । दूसरी और महात्माजी जो एक विद्वान गुरु होने के साथ साथ एक समाज सेवक और संत भी थे । वह इतने कर्तव्यपरायण थे कि अपने निजी जीवन के लिए अलग दीपक का और राजकार्य के लिए राजा द्वारा भेजे गये दीपक का ही इस्तेमाल करते थे । यदि वह चाहते तो राजा द्वारा भेजे गये दीपक का उपयोग अपने निजी जीवन में भी कर सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया । यदि हमारे देश का हर नेता और समाज सुधारक इतना ही वफादार हो जाये तो कोई कारण नहीं कि भारत पहले की तरह सोने की चिड़िया न बन पाए ।