वैद्यजी और झूठे ब्रह्मज्ञानी की कहानी

vaidyaji or jhuthe brahmagyani ki kahani
एक नगर में एक शुभचिंतक राजा रहता था । राजा अपनी प्रजा से बड़ा ही स्नेह – प्रेम करता था । दुर्भाग्य से उनके राज्य में एक महामारी फ़ैल गई । जिसके रहते लोग मरने लगे और राज्य की अधिकांश जनता अपंग हो गई, लेकिन राज्य में कोई वैद्य नहीं था । राजा ने पड़ोसी राज्य से एक वैद्य बुलवाया । वैद्य भी खुश था कि लोगों की सेवा करके अच्छे से अपनी आजीविका चलाएगा । वैद्यजी ने दिनरात मेहनत करके कुछ ही दिनों में पुरे गाँव की महामारी दूर कर दी ।

जब वैद्यजी लोगों से दवाई के पैसे मांगने लगे तो लोग वैद्यजी को ब्रह्मज्ञान का उपदेश देने लगे । कहने लगे – “ हममें भी ब्रह्म है, आपमें भी ब्रह्म है, ओषधि में भी ब्रह्म है, ब्रह्म का ब्रह्म से क्या लेना देना !।” बिचारे वैद्यजी लोगों के शब्दजाल में फस गये । इस तरह लोगों को वैद्यजी से मुफ्त में इलाज करवाने का अच्छा बहाना मिल गया ।

कुछ दिनों बाद तो वैद्यजी की आजीविका के लाले पड़ने लगे । बड़ी मुश्किल से वैद्यजी को रोटी नसीब हो पाती । परेशान होकर वैद्यजी ने अपने नगर वापस लौटने की सोची । तभी एक दिन राजा का बेटा बीमार पड़ गया । राजवैद्य ने सभी प्रकार की कोशिशे कर ली किन्तु राजकुमार ठीक नहीं हुआ । तभी राजा को परदेसी वैद्यजी का खयाल आया । उन्होंने तुरंत उन्हें बुला भेजा । वैद्यजी जा ही रहे थे कि उन्हें राजा का दूत उन्हें लेने आ गया ।

वैद्यजी राजमहल जाकर राजकुमार की चिकित्सा करने लगे । थोड़ा आराम हुआ लेकिन राजकुमार की हालत में कोई खास सुधार नहीं हुआ । तब राजा ने वैद्यजी से कहा – “ वैद्यजी ! कोई ऐसी दवाई दीजिये कि राजकुमार तुरंत ठीक हो जाये ।” मौका देखकर वैद्यजी ने ब्रह्मज्ञानियों को सबक सिखाकर अपना बदला लेने की सोची । वैद्यजी बोले – “ ऐसी दवाई बनाई तो जा सकती है लेकिन उसके लिए मुझे कुछ ब्रह्मज्ञानी लोगों का तेल चाहिए ।”

राजा बोला – “इसमें कोनसी बड़ी बात है, अपने राज्य में बहुत से ब्रह्मज्ञानी है । अभी भेजता हूँ अपने सिपाहीयों को ब्रह्मज्ञानी लाने के लिए ।”

यह बात पुरे नगर में आग की तरह फ़ैल गई कि राजकुमार की चिकित्सा के लिए ब्रह्मज्ञानियों का तेल चाहिए । सब लोग बुरी तरह से डर चुके थे । कोई भी ब्रह्मज्ञानी बनने को राजी नहीं था ।

सिपाही दिनभर नगर में घूमते रहे लेकिन जिससे भी पूछते वो यही कहता कि “ब्रह्मज्ञानी क्या होता है ? हमें तो पता ही नहीं ।” कोई कहता –“हमारे परिवार में आजतक कोई ब्रह्मज्ञानी नहीं हुआ ।”

इस तरह थक – हारकर सिपाही खाली हाथ ही लौट आये । इतने में वैद्यजी ने राजकुमार को दूसरी ओषधि देकर ठीक कर दिया । वैद्यजी अपना दुखड़ा सुना चुके थे । राजा ने उन सब लोगों को राजदरबार में बुलाया, जो ब्रह्मज्ञान का उपदेश देकर वैद्यजी का पैसा खाकर बैठे थे । राजा के डर से सभी लोगों ने वैद्यजी का पैसा दे दिया और आगे से ऐसा जूठा ब्रह्मज्ञान का उपदेश नहीं देने की कसम खाई ।

शिक्षा – जीवन में अक्सर ऐसे लोग मिलते है जो स्वयं आदर्शवादी नहीं होते हुए भी दूसरों से आदर्शों की अपेक्षा रखते है । ऐसे झूठे लोग भूल जाते है कि ताली एक हाथ से नहीं बजती । हम जैसा दूसरों को देखना चाहते है, वैसा हमें बनना चाहिए । केवल झूठे उपदेश देने और दिखावा करने से कोई परिवर्तन नहीं होने वाला प्रत्युत जिस दिन आपका असली चेहरा सामने आएगा, दूसरों को हैरान और आपको परेशान व लज्जित ही करेगा ।